Main Manu

Powered by :- Vidyapati Progressive Club
✺ दो गज दूरी मास्क है जरूरी ✺

❇❇❇❇⚜विद्यापति धाम का Official Website आपका हार्दिक स्वागत करता है।⚜❇❇❇❇


विद्यापति जी का जीवन परिचय
(Life introduction of vidyapati ji)



मैथिल कवि कोकिल विद्यापति, तुलसी, सूर, कबीर, मीरा सभी से पहले के कवि हैं। अमीर खुसरो यद्यपि इनसे पहले हुए थे। महाकवि कोकिल विद्यापति का पूरा नाम "विद्यापति ठाकुर" था। धन्य है उनकी माता "हाँसिनी देवी" जिन्होंने ऐसे पुत्र रत्न को जन्म दिया, धन्य है विसपी गाँव जहाँ कवि कोकिल ने जन्म लिया। 'श्री गणपति ठाकुर' ने कपिलेश्वर महादेव की अराधना कर ऐसे पुत्र रत्न को प्राप्त किया था। कहा जाता है कि स्वयं भोले नाथ ने कवि विद्यापति के यहाँ उगना (नौकर का नाम) बनकर चाकरी की थी।

जन्म

ऐसे किसी भी लिखित प्रमाण का अभाव है जिससे यह पता लगाया जा सके कि महाकवि कोकिल विद्यापति ठाकुर का जन्म कब हुआ था। यद्यपि महाकवि के एक पद से स्पष्ट होता है कि लक्ष्मण-संवत् 293, शाके 1324 अर्थात् सन् 1402 ई. में देवसिंह की मृत्यु हुई और राजा शिवसिंह मिथिला नरेश बने। मिथिला में प्रचलित किंवदन्तियों के अनुसार उस समय राजा शिवसिंह की आयु 50 वर्ष की थी और कवि विद्यापति उनसे दो वर्ष बड़े, यानी 52 वर्ष के थे। इस प्रकार 1402 में से 52 घटा दें तो 1350 बचता है। अत: 1350 ई. में विद्यापति की जन्मतिथि मानी जा सकती है। लक्ष्मण-संवत् की प्रवर्त्तन तिथि के सम्बन्ध में विवाद है। कुछ लोगों ने सन् 1109 ई. से, तो कुछ ने 1119 ई. से इसका प्रारंभ माना है। स्व. नगेन्द्रनाथ गुप्त ने लक्ष्मण-संवत् 293 को 1412 ई. मानकर विद्यापति की जन्मतिथि 1360 ई. में मानी है। ग्रिपर्सन और महामहोपाध्याय उमेश मिश्र की भी यही मान्यता है। परन्तु ब्रजनन्दन सहाय 'ब्रजवल्लभ', रामवृक्ष बेनीपुरी, डॉ. सुभद्र झा आदि सन् 1350 ई. को उनका जन्मतिथि का वर्ष मानते हैं। डॉ. शिवप्रसाद के अनुसार "विद्यापति का जन्म सन् 1374 ई. के आसपास संभव मालूम होता है।" अपने ग्रन्थ विद्यापति की भूमिका में एक ओर डॉ. विमानविहारी मजुमदार लिखते है कि "यह निश्चिततापूर्वक नहीं जाना जाता है कि विद्यापति का जन्म कब हुआ था और वे कितने दिन जीते रहे" और दूसरी ओर अनुमान से सन् 1380 ई. के आस पास उनकी जन्मतिथि मानते हैं। हालांकि जनश्रुति यह भी है कि विद्यापति राजा शिवसिंह से बहुत छोटे थे।

बचपन

एक किंवदन्ती के अनुसार बालक विद्यापति बचपन से तीव्र और कवि स्वभाव के थे। एक दिन जब ये आठ वर्ष के थे तब अपने पिता गणपति ठाकुर के साथ शिवसेंह के राजदरबार में पहुँचे। राजा शिवसिंह के कहने पर इन्होने निम्नलिखित दे पंक्तियों का निर्माण किया:

पोखरि रजोखरि अरु सब पोखरा।
राजा शिवसिंह अरु सब छोकरा।। 

पारिवारिक जीवन



महाकवि विद्यापति ठाकुर के पारिवारिक जीवन का कोई स्वलिखित प्रमाण नहीं है, किन्तु मिथिला के उतेढ़पोथी से ज्ञात होता है कि इनके दो विवाह हुए थे। प्रथम पत्नी से नरपति और हरपति नामक दो पुत्र हुए थे और दूसरी पत्नी से एक पुत्र वाचस्पति ठाकुर तथा एक पुत्री का जन्म हुआ था। संभवत: महाकवि की यही पुत्री 'दुल्लहि' नाम की थी जिसे मृत्युकाल में रचित एक गीत में महाकवि अमर कर गये हैं। कालान्तर में विद्यापति के वंशज किसी कारणवश विसपी को त्यागकर सदा के लिए सौराठ गाँव आकर बस गए। वर्तमान समय में महाकवि के सभी वंशज इसी गाँव में निवास करते हैं।